पालमपुर . पूर्व मुख्यमंत्री शान्ता कुमार ने कहा है देश में नई जन गणना जाति आधार पर करने की कुछ नेता मांग कर रहे हैं। यह मांग बिलकुल गलत और खतरों से भरी है। 1930 में जाति आधार पर जन गणना हुई थी। क्योंकि उस समय देश गुलाम था। 1951 में जब जनगणना होने लगी तो जाति आधार पर जन गणना करने की मांग उठाई गई। उस समय के गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल जी ने कहा कि जाति आधारित जन गणना से सामाजिक ताना-बाना बिखर जाएगा। स्वतंत्र भारत की सरकार ने इस मांग को स्वीकार नहीं किया। अब 90 साल के बाद फिर से जाति आधार पर जन गणना की मांग बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।
उन्होंने कहा भारत को याद रखना चाहिए कि जब देश छोटे टुकड़ों में और जातियों में बंटा। सभी कुछ सैकड़ों विदेशियों ने आकर करोड़ों के भारत को गुलाम बनाया और एक हजार साल तक भारत गुलाम रहा।
शान्ता कुमार ने कहा इस बात पर गहरा विचार किया जाना चाहिए कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण करने के बाद भी उन जातियों की गरीबी क्यों दूर नहीं हुई है। उन जातियों में आरक्षण का लाभ ऊपर के प्रभावशाली और अधिकारी लोग उठाते है। नीचे के गरीबों को लाभ नहीं होता। यही कारण है कि उन जातियों की गरीबी समाप्त नहीं हुई। इसीलिये सुप्रीम कोर्ट कई बार आरक्षित जातियों की क्रीमी लेअर (अमीर लोग) को हटाने की बात कह चुका है। परंतु इन जातियों के नेता उसका विरोध करते हैं क्योंकि वही आरक्षण का पूरा लाभ उठाते है। उन्होंने कहा नीति आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा कि देश में गरीबी और विषमता बढ़ रही है। शान्ता कुमार ने कहा अब जनगणना आर्थिक आधार पर होनी चाहिए। अति गरीब लोगों की अलग से पहचान होनी चाहिए। आरक्षण आर्थिक आधार पर होना चाहिए। 72 वर्ष के बाद देश अमीर हुआ है परंतु 19 करोड़ लोग भूखे पेट सोते है। यह जातिगत आरक्षण का परिणाम है।