हिमाचल प्रदेश में इस बार प्राकृति का तांडव सहन किया। भारी बरसात के कारण बड़े-बड़े पहाड़ों से चट्टाने टूटी हैं, जिससे जन धन का भारी नुकसान हुआ है। तबाही का ऐसा मंजर शायद ही हिमाचल के लोगों ने कभी देखा हो। कांगड़ा से लेकर किन्नौर तक, चंबा से लाहौल तक तबाही का मंजर देखा गया है। बड़ी-बड़ी पहाड़ियों के टूटने के वीडियो जब लोगों ने देखे, तो रोंगटे खड़े कर देने वाले थे। एक अनुमान के अनुसार बारिश के कारण मची तबाही से 300 के करीब लोगों की मौत हुई है और हजारों करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ है। कांगड़ा, किन्नौर और लाहौल में चट्टान टूटने और पानी का बहाव तेज होने के दर्जनों लोग बह गए हैं। बहुत से पुलों की टूटने के समाचार भी देखे गए हैं। सरकार का प्रशासनिक अमला अब नुकसान का जायजा ले रहा है। कांगड़ा जिले में बाढ़ से नुकसान का प्रारंभिक आंकड़ा आया है जो सौ करोड़ से अधिक के नुकसान का अनुमान बताता है। इसी तरह प्रदेश के हर जिले में नुकसान हुआ है। बारिश के कारण हुई तबाही के इस मंजर को देखकर प्रदेश के ट्राइबल क्षेत्रों में रहने वाले लोग अभी तक डरे हुए हैं। अभी भी आवागमन के रास्ते बंद हैं, आम जनजीवन अस्त व्यस्त है। चंबा, किन्नौर और लाहौल स्फीति जिले में रहने वाले लोगों को मानना है कि पहाड़ों का ऐसे टूटकर गिरने का कारण प्राकृति से की गई छेड़छाड़ है। किन्नौर के लोगों का साफ तौर पर मानना है कि जिले में लगने वाली विद्युत परियोजनाओं के कारण पहाड़ों से बहुत छेड़छाड़ की गई है। पहाड़ों को तोड़कर और सुरंगे बनाकर बड़ी-बड़ी पहाड़ियों को खोखला कर दिया गया है। किन्नौर क्षेत्र के लोगों का अनुमान है कि विकास की अंधी दौड़ में सरकार ने सैकड़ों पावर प्रोजेक्टों को बनाने की अनुमति दे दी है। जिले में करीब सौ से अधिक छोटे-बड़े पावर प्रोजेक्ट निर्माणाधीन हैं। क्षेत्र में बनने वाले बड़े पावर प्रोजेक्टों ने पहाड़ों को धराशाही कर दिया है। कई पहाड़ों के बीच में सुरंगों का निर्माण किया गया है। जिससे मजबूत पहाड़ कमजोर होते जा रहे हैं। जिसके कारण ही पहाड़ टूटकर तबाही मचा रहे हैं। इस वर्ष किन्नौर में टूटे बड़े पहाड़ को गिरते हुए सब ने देखा है जिससे दस से अधिक लोगों की मौत हुई है, पुल टूट गया है और भी भारी नुकसान हुआ है। जिससे अब किन्नौर जिले के युवाओं से लेकर बुजुगों तक ने अंधाधुंध होती पहाड़ों की खुदाई के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है। अभी यह अभियान किन्नौर जिले में निर्माणाधी जंगी थोपन विद्युत परियोजना के खिलाफ चला दिया है। पूह और पांगी क्षेत्र के युवाओं और बुजुर्गों ने ‘ नो मीन्स नो, सेव किन्नौर, सेव सतलुज, सेव नेचर ‘ के पोस्टर लेकर अभियान चला रहे हैं। क्षेत्र के लोग जंगी थोपन परियोजना के क्षेत्र में लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इसके साथ ही सोशल मीडिया के माध्यम से भी अभियान को चला रहे हैं जिससे अधिक से अधिक लोग उनके अभियान के साथ जुड़ सकें। क्षेत्र की युवा छात्रा समीशा डेर्या का कहना है कि अब क्षेत्र के लोगों ने मिलकर किन्नौर, सतलुज नहीं और प्रकृति को बचाने का अभियान चला दिया है। हम लोग जंगी थोपन बिजली परियोजना का विरोध कर रहे हैं। इसी योजना के कारण ही क्षेत्र के पहाड़ों को खोदकर कमजोर किया जा रहा है, जिससे भविष्य में और बढ़ी तबाही हो सकती है। जिससे अब तबाही रोकने के लिए ही हम लोग प्रकृति और पहाड़ों को बचाने के लिए निकल पड़े हैं। इसी तरह पूह के उपप्रधान वीरेंद्र और किरण पंगडू भी जंगी थोपन परियोजना का विरोध कर रहे हैं। उनका भी मानना है कि विद्युत परियोजनाओं के निर्माण से जिले में प्रकृति को भारी नुकसान हो रहा है। अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और इन योजनाओं का विरोध किया जाएगा। यह बहुत अच्छा अभियान है कि कम से कम लोग प्रकृति को बचाने के लिए अब सामने आ गए हैं। मेरा मानना है कि औद्योगिक विकास के अंधी दौड़ में प्रकृति से खिलावाड़ नहीं होना चाहिए। किन्नौर के लोगों के इस अभियान से अधिक से अधिक लोगों को जुड़कर विरोध की आवाज को बुलंद करना चाहिए। जिससे प्रकृति को बचाने की आवाज सरकार तक पहुंचे और वह प्रकृति का विनाश करने वाले उद्योगों को स्थापित करने का प्रयास न करे। प्रकृति को बचाने और संवारने के लिए सबको आगे आना चाहिए, नहीं तो यह तबादी हम सब के घर तक पहुंचेगी।