संदीप उपाध्याय
शिमला. सियासी संघर्ष की भट्ठी में तपकर निकले ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू देवभूमि की माटी का कर्ज चुकाने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। संगठन में 40 बरस के संघर्ष के बाद सत्ता की कुर्सी पर विराजमान होकर वह पूरी तरह जनकल्याण पर केंद्रित है। ईमानदारी की कसौटी पर खरा यह मानवीय हीरा पल-पल मानव कल्याण की सोच के साथ आगे बढ़ रहा है। सियासत में ईमानदारी का रास्ता बहुत कठिन है, कदम-कदम पर कांटे बोने वाले भी खड़े हैं, लेकिन सुक्खू रुकने वाले नहीं है। वह अपने लक्ष्य पर केंद्रित होकर जनकल्याण के लिए नित नए चौंकाने वाले निर्णय लेते हैं, जिससे मुख्यमंत्री की सोच स्पष्ट दिखती है कि वह समाज में उपेक्षित अंतिम पंक्ति में बैठे लोगों के कल्याण के लिए कदम उठाना चाहते हैं, उठा रहे हैं। इस सोच के रुप में अनाथ बच्चों का जीवन रोशन करने की सुख आश्रय योजना से लेकर विधवा महिलाओं के बच्चों की शिक्षा का खर्च सरकार के द्वारा उठाए जाने का निर्णय को देखा जा सकता है।
सत्ता तक पहुंचने के रास्ते पर चलते हुए सुक्खू ने प्रदेश की जनता के सामने अपने मन की बात रखी कि हमें सत्ता के लिए नहीं, व्यवस्था परिवर्तन के लिए मौका दीजिए। जनता के समर्थन से व्यवस्था परिवर्तन का दौर शुरु हुआ। व्यवस्था परिवर्तन (ईमानदारी) के दौर में सभी का साथ चल पाना असंभव है। इस कारण मुख्यमंत्री सुक्खू के रास्ते में बाधाएं पैदा की जा रहीं हैं और दबाव की सियासत का प्रयास किया जा रहा है। अपनी ही पार्टी के कुछ नेताओं के द्वारा की जा रही दबाव की सियासत पर सुक्खू अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं। जिससे साफ होता है कि सुक्खू किसी भी कीमत पर अपने लक्ष्य से भटकेंगे नहीं। सियासत में ऐसी बधाएं आती रहती हैं, लेकिन इन सबसे ऊपर जनकल्याण का काम करना है। जिसे करने के लिए कदम दर कदम आगे बढ़ रहे हैं।
मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू स्पष्ट रुप से कहते हैं कि वह सत्ता सुख के लिए सत्ता में नहीं आए हैं, बल्कि जन सेवा के लिए सत्ता में आए हैं। कथनी और करनी को जमीन पर अमलीजामा पहनाने के लिए सुक्खू लगातार प्रयास कर रहे हैं। सुक्खू ने अपने बजट में साफ किया है कि सरकार हर वर्ग के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है। जिसके कारण ही बजट में किसान, बागवान, पशुपालक, युवाओं और महिलाओं सहित समाज के हर वर्ग के कल्याण के लिए प्रावधान किया गया है। सुक्खू की सोच जनकल्याण के साथ-साथ हिमाचल को मिली कुदरत की अनमोल देन प्राकृतिक सौंदर्यता को बचाने की भी है। जिससे वह हिमाचल को ग्रीन हिमाचल बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। इसके साथ ही मुख्यमंत्री के समक्ष कर्ज के बोझ में दबे हिमाचल को आर्थिक रुप से सुदृण बनाने की चुनौती भी है। वर्तमान में प्रदेश 85 हजार करोड़ से अधिक के कर्ज में दबा है। प्रदेश के हर व्यक्ति पर करीब 1 लाख रुपए का कर्ज है। मुख्यमंत्री सुक्खू प्रदेश को आर्थिक रुप से मजबूत और आत्मनिर्भर बनाने के लिए कदम उठा रहे हैं। मुख्यमंत्री के प्रयासों से इसके परिणाम भी सकारात्मक आने शुरु हो गए हैं। सरकार को पहले वर्ष में ही एक हजार करोड़ से अधिक की आय का अनुमान है। हजारों करोड़ के कर्ज में दबे होने के बाद भी मुख्यमंत्री ने अपनी सीमित संसाधनों से चुनावी वायदों को पूरा करने के लिए कदम उठा रहे हैं। प्रदेश के कर्मचारियों के लिए ओपीएस लागू किया गया है। युवाओं को रोजगार प्रदान करने के लिए 680 करोड़ का स्टार्टअप योजना शुरु की गई है। वहीं महिलाओं को 1500 रुपए प्रतिमाह देने की योजना की शुरुआत की है और पहले चरण में लाहौल स्फीती की सभी महिलाओं को 1500 रुपए प्रति माह देने का निर्णय लिया है। इस तरह हर चुनावी वायदोंं को पूरा करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
इस तरह मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू सत्ता की कुर्सी में बैठकर हिमाचल की माटी का कर्ज चुकाने के लिए दृढ़ संकल्प लिए आगे बढ़ रहे हैं। देव तुल्य हिमाचल की जनता ने मौका दिया है तो उसका पल पल जन कल्याण और हिमाचल प्रदेश के कल्याण के लिए समर्पण के साथ लगा रहे हैं।