संदीप उपाध्याय
शिमला. लंबी सरकार सेवा करने के बाद दो आला अधिकारियों की रिटायरमेंट की उलटी गिनटी शुरु हो गई है। अब आला अधिकारी सरकारी रुतबे और सुविधाओं के लिए फिर से सरकारी रोजगार के लिए जुगाड़ लगा रहे हैं। सचिवालय में ऐसी चर्चाएं हैं कि एक आला अधिकारी बोर्ड में चेयरमैन या मुख्यमंत्री के सलाहकार की भूमिका चाहते हैं तो दूसरे अधिकारी किसी कमीशन में अध्यक्ष पद पर आसीन होने का जुगाड़ लगा रहे हैं। अब बड़ा सवाल है कि व्यवस्था परिवर्तन के नय दौर का दम भरने वाले मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू रिटायरियों को सरकारी रोजगार देते हैं कि नहीं।
पूर्व में भाजपा और कांग्रेस सरकारों के समय हमेशा अधिकारी रिटायरमेंट के बाद सरकार रोजगार लेने में कामयाब होते रहे हैं। दर्जनों अधिकारी ऐसे हैं जो किसी आयोग, किसी कमीशन में अध्यक्ष या सदस्य बनकर रिटायरमेंट के बाद वर्षों तक सरकारी सुविधाओं को लाभ लेते रहे हैं। रिटायरमेंट के बाद सरकारी रोजगार हासिल करने में कामयाब होने वाले अधिकारियों को कई वर्षों तक राजधानी शिमला में सरकारी आवास, सरकारी गाड़ी, नौकर-चाकर आदि की सुविधा कायम रहती है। इसी लिए अधिकारी रिटायरमेंट के बाद सरकार रोजगार के लिए जुगाड़ फिट करते हैं। पूर्व भाजपा सरकार के समय तात्कालीन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने एक अधिकारी को रिटायरमेंट के बाद रेगुलेटरी आथॉरिटी में चैयरमैन के पद पर ताजपोशी कर दी थी। तब विपक्ष में बैठी कांग्रेस पार्टी के विधायकों ने सदन से लेकर सड़क तक मुद्दा उठाया। अधिकारी की नियुक्ति होने पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और चुनावों तक कांग्रेस पार्टी ने इसे मुद्दा बनाया था।
अब सत्ता में व्यवस्था परिवर्तन के साथ मुख्यमंत्री के पद पर ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू विराजमान हैं। विधानसभा चुनावों से लेकर सरकार बनने के बाद तक सुखविंदर सिंह सुक्खू व्यवस्था परिवर्तन के नए दौर के दावे करते रहे हैं। व्यवस्था परिवर्तन का आशय जो पहले होता रहा, अब वह नहीं होगा, अब व्यवस्था बदल चुकी है।
अब देखना यह है कि व्यवस्था परिवर्तन रिटायरियों को फिर सरकारी रोजगार देने के मसले पर हुई है कि नहीं। अगर मुख्यमंत्री सुक्खू रिटायरियों को रोजगार नहीं देते हैं तो माना जाएगा कि व्यवस्था परिवर्तन में अब रिटायरियों को रोजगार भी नहीं मिलेगा। यदि रिटायर होने वाले अधिकारी सरकार रोजगार लेने में कामयाब हो जाते हैं तो यह माना जाएगा कि रिटायरियों को रोजगार का मसला व्यवस्था परिवर्तन के दायरे के बाहर है।
किसे सरकारी रोजगार दें या न दें, यह सब मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र का मसला है। लेकिन व्यवस्था परिवर्तन के नय दौर में यह उम्मीद की जाती है कि जिन अधिकारियों ने 30 वर्ष से अधिक समय सरकार सेवा कर ली है, उन्हें और आगे सरकारी रोजगार क्यों दिया जाए। इसमें प्राइवेट सेक्टर के बहुत से अनुभवी लोग हैं, उन्हें मौका दिया जाए तो बेहतर होगा।
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