संदीप उपाध्याय
शिमला. कांग्रेस सरकार के मंत्री विक्रमादित्य सिंह का अयोध्या श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने के कार्यक्रम को लेकर चर्चा तेज है। इसी बीच विक्रमादित्य सिंह स्पष्ट कहते हैं कि उनकी भगवान श्रीराम में धार्मिक आस्था है। उनके पिता स्वर्गीय वीरभद्र सिंह ने राम मंदिर निर्माण के लिए अपने निजी कोष से दान भी दिया था। हिमाचल की देव परंपरा में गहरी आस्था होने के कारण वह देश और प्रदेश के हर धार्मिक समारोह में भाग लेते हैं। भगवान श्रीराम मंदिर का निर्माण होना और मंदिर में श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा होना देश के लिए गर्व की बात है। श्रीराम के दर्शन के लिए वह अयोध्या जरुर जाएंगे। विक्रमादित्य सिंह कहते हैं कि धर्म और आस्था राजनीति से बहुत ऊपर है। धर्म पूरी तरह व्यक्तिगत मामला है। धर्म को राजनीति से जोड़ना उचित नहीं है। विक्रमादित्य सिंह कहते हैं कि मेरे आयोध्या जाने के कार्यक्रम का कोई भी राजनीतिक मकसद नहीं है और इसका राजनीति से कोई लेना देना नहीं है।
विक्रमादित्य सिंह को अयोध्या में श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने का निमंत्रण मिला है। विक्रमादित्य कहते हैं कि भगवान श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण मिलना सौभाग्य की बात है। वह हर हाल में श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होंगे।
विक्रमादित्य सिंह का अयोध्या जाने के कार्यक्रम पर सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा शामिल नहीं होने का निर्णय लिया है। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि यह भाजपा और आरएसएस का कार्यक्रम है। वहीं विक्रमादित्य सिंह कहते हैं कि धर्म का राजनीति से कोई लेना देना है। उनके अयोध्या जाने का कार्यक्रम धार्मिक है और पूरी तरह आस्था से जुड़ा मामला है। इसे राजनीतिक दृष्टि से देखना गलत है।
विक्रमादित्य सिंह कहते हैं अयोध्या में राममंदिर का ताला पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी जी ने खुलवाया था। राम मंदिर को लेकर भाजपा राजनीति कर रही है, जो पूरी तरह गलत है।
विक्रमादित्य सिंह हमेशा अपनी सोशल मीडिया पोस्ट के साथ – जय श्री राम – का नारा लिखते हैं। सियासत में इस नारे को लेकर कई कयास लगाए जाते रहे हैं, लेकिन विक्रमादित्य सिंह का कहना है कि आस्था और राजनीति को नहीं जोड़ना चाहिए। आस्था जनता की व्यक्तिगत भावना है। वह कहते हैं कि आस्था और धर्म का राजनीति के साथ कोई सरोकार नहीं हैं , इन्हें मिलाने की कोशिश करने वाले निहायती कमजोर लोग होते हैं जो धर्म की आड़ में राजनीति करते हैं। धर्म के बारे में विक्रमादित्य सिंह की सोच पूरी तरह स्पष्ट है।