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हमारे शास्त्रों में और ज्योतिष में रुद्राक्ष का बहुत महत्व है । रुद्राक्ष को भगवान शिव का प्रसाद भी माना जाता है.
क्योंकि यह भगवान शंकर को बहुत प्रिय है. यही कारण है कि दुनिया भर के शिव भक्त हमेशा इसे किसी न किसी रूप में इसे धारण किये रहते हैं.शिव पुराण के अनुसार वर्षों तक कठोर तपस्या में लीन शिव जी ने जब अचानक किसी कारणवश अपने नेत्र खोले तो उनके नेत्र से आंसुओं की कुछ बूंदें पर्वत पर गिरीं । इन्हीं अश्रु बूंदों से रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए। इसी कारण इनका नाम रूद्राक्ष अर्थात रुद्र का अक्ष या शिव का अश्रु पड़ा। रुद्र की कृपा दिलाने वाला यह रुद्राक्ष व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक कष्टों से मुक्ति दिलाता है. जो व्यक्ति रुद्राक्ष की माला से शिव की साधना करता है, उसे अनंत फलों की प्राप्ति होती है. रुद्राक्ष धारण से ना केवल राहु, शनि, केतु, मंगल जैसे क्रूर ग्रहों के दुष्प्रभाव से होने वाले रोगों व संकटों का नाश होता है बल्कि जीवन के संघर्षों से राहत भी मिलती है। यह अकाल मृत्यु, दुर्घटनाओं को भी रोकने में मदद करता है। स्कन्ध पुराण और लिंग पुराण में कहा गया है कि अगर व्यक्ति रुद्राक्ष धारण करता है तो उसमें आत्मविश्वास और मनोबल बढ़ता है।
रुद्राक्ष भारत, नेपाल, जावा, मलाया जैसे देशों में पैदा होता है। भारत के असाम, बंगाल, देहरादून के जंगलों में पर्याप्त मात्र में रुद्राक्ष पैदा होते हैं। रुद्राक्ष का जो फल होता है वो कुछ नीला और बैंगनी होता है। यह इसके अंदर एक गुठली के रूप में स्थित होता है। इस फल के बीज को ही रुद्राक्ष कहा जाता है।
शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार, रुद्राक्ष के मुखों के अनुसार ही इनकी क्षमता होती है। एक मुखी से लेकर यह इक्कीस मुखी तक होते हैं। इन सभी की अलौकिकता एवं क्षमता अलग-अलग होती है। जो रुद्राक्ष हिमालय की तराइयों में पाए जाते हैं उनकी महिमा सबसे बड़ी कही गई है। दस मुखी और चौदह मुखी रुद्राक्ष अतिदुर्लभ माने जाते हैं। वहीं पंद्रह से लेकर इक्कीस मुखी तक के रुद्राक्ष साधारणतय: नहीं मिलते हैं। वहीं, एक मुखी की महिमा ही अपरम्पार है। अगर किसी को यह मिल जाए तो उसे बाकी कुछ पाना बाकी नहीं रहता है। वह बेहद भाग्यशाली होता है। वैसे तो रुद्राक्ष को किसी भी महीने धारण किया जा सकता है लेकिन सावन का महीना सबसे उपयुक्त माना जाता है क्योंकि यह महीना पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित होता है। लेकिन रुद्राक्ष को धारण करने के भी नियम होते हैं और रुद्राक्ष कई मुखी होता है।
मैं पाठकों को यह बताना चाहूंगा कि रुद्राक्ष का जो बीज आकार में एक समान, चिकना, पक्का ताथा कांटो वाला होता है, उसे शुभ माना गया है. वहीं कीड़े लगे, टूटे–फूटे, बिना कांटों के छिद्रयुक्त तथा बिना जुड़े हुए रुद्राक्ष को अशुभ माना गया है. ऐसे रुद्राक्ष को भूलकर भी नहीं धारण करना चाहिए.
कैसे धारण करें रुद्राक्ष:
रुद्राक्ष धारण करने के लिए सावन के महीने में आप चाहें तो किसी भी दिन या फिर विशेष रूप से सोमवार के दिन इसे विधि–विधान से पूजा करके धारण कर सकते हैं. रुद्राक्ष को हमेशा लाल, पीला या सफेद धागे में ही धारण करना चाहिए. रुद्राक्ष को भूलकर भी काले धागे में धारण न करें. रुद्राक्ष को धारण करते समय ‘ॐ नम: शिवाय‘ का जप करते रहें. रुद्राक्ष को चाँदी, सोना या तांबे में भी जड़वाकर हाथ, बाजु या फिर गले में धारण किया जा सकता है. रुद्राक्ष की माला चाहे पहनने वाली हो या फिर जप करने वाली, उसे दूसरे व्यक्ति को प्रयोग करने के लिए नहीं देना चाहिए.
भगवान शिव के रुद्राक्ष को अलग–अलग जगह पर अलग अलग संख्या में धारण करने का विधान है. जेसे शिखा में एक रुद्राक्ष, सिर पर तीस रुद्राक्ष, गले में छत्तीस, दोनों बाजुओं में 16-16 रुद्राक्ष,कलाई में 12 रुद्राक्ष धारण करना चाहिए. दो, पांच या फिर सात लड़ी की माला को कंठ में धारण करना चाहिए.
मैं पाठकों को यह बताना चाहूंगा कि रुद्राक्षों में नन्दी रुद्राक्ष, गौरी शंकर रुद्राक्ष, त्रिजूटी रुद्राक्ष, गणेश रुद्राक्ष, लक्ष्मी रुद्राक्ष, त्रिशूल रुद्राक्ष और डमरू रुद्राक्ष भी होते है। इन्हें बेहद दैविक माना गया है। इनका इस्तेमाल दवाई के रूप में भी किया जाता है। साथ ही रुद्राक्ष माला के रूप में प्रयुक्त होता है। स्फटिक शिवलिंग, बाण लिंग अथवा पारद शिवलिंग को स्थापित कर यदि रुद्राक्ष धारण कर लिया जाए तो वो व्यक्ति सम्राटों जैसा वैभव प्राप्त कर लेता है।
मैं पाठकों को रुद्राक्ष के विभिन्न मुखों के बारे में बताना चाहूंगा।
1 .एक मुखी रुद्राक्ष में केवल एक धारी होती है।हृदय रोग से पीड़ित व्यक्ति या जिनकी कुंडली में सूर्य संबंधी दोष हो उन्हें एकमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
2-दो मुखी रुद्राक्ष
को अर्धनारीश्वर स्वरूप माना जाता है। इस पर दो धारियां होती हैं। कर्क राशि के जातकों के लिए दोमुखी रुद्राक्ष धारण करना शुभ होता है। इस रुद्राक्ष को धारण करने से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
3-तीन मुखी रुद्राक्ष को अग्नि सवरूप माना जाता है। इस रुदाक्ष को धारण करने से कुंड़ली में व्याप्त मंगल दोष समाप्त हो जाता है। मेष और वृश्चिक राशि के जातकों को इस धारण करना उत्तम फलदायक है।
4-चार मुखी रुद्राक्ष को ब्रह्मा जी और देवी सरस्वती का रूप माना गया है। ब्रह्माजी को रचनात्मकता का कारक भी माना जाता है, वहीं सरस्वती मां ज्ञान की देवी मानी जाती हैं। इसलिए चार मुखी रुद्राक्ष छात्रों के लिए बहुत लाभदायक होता है। जिन छात्र-छात्राओं में एकाग्रता की कमी है, उनके लिए यह रुद्राक्ष औषधि का काम करता है साथ ही पढ़ने-लिखने में रुचि बढ़ता है।
5- पंच मुखी रुद्राक्ष का संबंध बृहस्पति ग्रह से है।।इसे धारण करने से शक्ति और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
6- छः मुखी रुद्राक्ष धारण करना शुक्र ग्रह के लिए लाभकारी माना जाता है। इसे धारण करने से धन और वैभव की प्राप्ति होती है।
7- सात मुखी रुद्राक्ष का संबंध ज्योतिष में शनि ग्रह से माना जाता है। इसे धारण करने से आर्थिक संपन्नता की प्राप्ति होती है।
8- आठ मुखी रुद्राक्ष अष्टदेवियों का रूप माना जाता है। इसे धारण करने से अष्टसिद्धियों की प्राप्त होती है तथा राहु संबंधित समस्या से मुक्ति मिलती है।
9- नौ मुखी रुद्राक्ष रुद्राक्ष धन-सम्पत्ति, मान-सम्मान और यश बढ़ाता है ।
10- दस मुखी रुद्राक्ष नाकारात्मक शक्तियों से बचाता है। इसे पहनने से दमा, गठिया, पेट, और आंख संबंधी रोगों में लाभ होता है।
11- ग्यारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने से निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि होती है। साथ ही यह प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है।
12- बारह मुखी रुद्राक्ष पेट के रोग, ह्रदय रोग और मस्तिष्क के रोगों में लाभ प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त ज्योतिष में इसे सफलता प्राप्ति का कारक भी माना जाता है।
13-तेरह मुखी रुद्राक्ष का संबंध शुक्र ग्रह से माना जाता है। मान्यता है कि इसे धारण करने से वैवाहिक जीवन में सुख की प्राप्ति होती है।
14- चौदह मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से छठी इंद्रीय जागृत होती है जो कि आपके मस्तिष्क को संयमित करके सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करती है।
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